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सनातन धर्म क्या है

सनातन अथवा जिसका ना तो प्रारंभ है और ना अंत और जो सृष्टि के साथ ही उत्पन्न हुआ, जो शाश्वत है, सनातन है, इसी प्राचीन परम्परा, संस्कृति और व्यवस्था को सनातन धर्म कहा गया। सनातन धर्म की मान्यता है कि सनातन धर्म को किसी ने नहीं बनाया बल्कि यह स्वतः उत्पन्न हुआ और समय के साथ-साथ अपने को परिमार्जित करते हुए यह धर्म आज भी अनेकों झंझावातों और विपरीत परिस्थितियों के बाद भी विश्व के सबसे प्राचीन धर्म के रूप में अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं।

समस्त सनातन धर्मीयों के लिए गर्व करने वाली बात यह है की उनके पास विश्व का सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद के रूप में मौजूद है, जिससे यह सिद्ध होता है कि सनातन सभ्यता संस्कृति तब से ही पुष्पित और पल्लवित है जब दुनिया में और कहीं सभ्यता का नामोनिशान तक नहीं था।

जब हम अपने प्राचीनतम राज्य व्यवस्था और शासन व्यवस्था की तरफ देखते हैं तो हम पाते हैं कि हमारी सभ्यता, संस्कृति कितनी महान और विलक्षण थी। आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व जब श्रीराम और रावण का युद्ध हो रहा था तो उस समय रात के समय युद्ध नहीं होता था। कुछ ऐसे ही नियम महाभारत युद्ध के समय भी थे परन्तु उन नियमों का पूर्णरूपेण पालन नहीं किया गया।फिर भी इन युद्धों में पालन किये गये उच्च स्तर के मानवीय मूल्यों से हमें यह पता चलता है कि हमारी प्राचीन व्यवस्था कितनी ज्यादा सभ्य, सुसंस्कृत और संस्कारित थी जबकि दुनिया के तमाम आधुनिक भेड़ चाल वाले इतिहासकार और पिछलग्गु, चापलूस विद्वान कहते हैं की पहले का मानव असभ्य और बर्बर था। जबकि उससे कहीं ज्यादा बर्बरता और असभ्यता आज के आधुनिक समाज में विद्यमान है। आज बहुत से लोग कहते और समझते हैं कि हम सब सभ्य समाज में जी रहे हैं, जबकि आज के समय के युद्ध दिन रात लड़े जाते हैं और उनमें किसी नियम का पालन नहीं होता है, जब कि 4000 वर्ष पहले के जो युद्ध लड़े जाते थे उसमें रात के समय कोई युद्ध नहीं होता था ,आप कल्पना कर सकते हैं कि उस समय की, जब रात्रि के समय साधारण जनता, औरतें, बच्चे सब अपने-अपने घरों में विश्राम करते रहे होंगे और वो भी बिना किसी डर और भय के,यहाँ सोचने वाली बात यह है कि ऐसी कौन सी व्यवस्था उस समय रही होगी जो दोनों ही पक्षों को इस तरह के युद्ध को लड़ने से रोकती थी, वहीं जब हम वर्तमान आधुनिक समाज और शासन व्यवस्था को देखते हैं तो लोग अपने सगों को भी धन- दौलत, सत्ता और शक्ति हासिल करने के लिए हत्या करने से भी नहीं चूकते हैं।

सभी सनातन धर्मियों के लिए गर्व करने की बात यह है कि इस धर्म ने कभी भी दूसरे धर्म के लोगों को नरसंहार, मारकाट, बलात्कार, लालच, प्रलोभन, भय एवं दंड आदि पाशविक प्रवृत्तियों के बल पर उनका धर्म या मत बदलने के लिए विवश नहीं किया।

ब्रह्मराष्ट्र एकम का एक परिचय

ब्रह्म अर्थात ब्रह्मा जिसका अर्थ होता है सृष्टि की उत्पत्ति का आधार और राष्ट्र का अर्थ होता है सांस्कृतिक रूप में संगठित और एकरूपीय समुदाय जिसे अपनी आध्यात्मिक जीवन की एकता और अभिव्यक्ति का ज्ञान है और उसे बनाए रखना चाहता है। जैसा कि हम जानते हैं कि एक महान विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिए चार महत्वपूर्ण चीजें होती है जिनके आधार पर राष्ट्र का निर्माण होता है और वह चीजें हैं भाषा धर्म सभ्यता और संस्कृति जिनके आधार पर राष्ट्र का निर्माण किया जाता है फिर धीरे-धीरे इसमें आर्थिक विकास वह सामाजिक विकास की नीतियों को भी सम्मिलित किया जाता है अब इस राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को अगर हम भारतवर्ष के संदर्भ में देखें तो हमें देखते हैं की जो भारतवर्ष की मुख्य समाज है जो कि हिंदू समाज है उसके अंदर जातिगत भेदभाव विद्यमान है और यह जातीय भेदभाव एक सशक्त और मजबूत राष्ट्र के निर्माण में बहुत बड़ा संकट है| ऐसे संकट को और भेदभाव को मिटाने का सफल प्रयास है जिससे सशक्त भारत की रचना विश्व पटल पर की जा सके।

ब्रह्मराष्ट्र एकम का महत्व

ब्रह्मराष्ट्र एकम समस्त विश्व के सनातन धर्म समाज में व्याप्त ऊँच नीच ,जाति पांति, पर आधारित भेदभाव को दूरकर सनातन धर्म की प्राचीन महान परंपराओं, संस्कृतियों,विश्वासों, व्यवहारों के पुनः स्थापना के विचार से प्रेरित विचार है ब्रह्मराष्ट्र एकम।इसके साथ ही ब्रह्मराष्ट्र एकम सनातन समाज में सद्भावना, समरसता एवं एकता की भावना का सूत्रपात करते हुए राष्ट्र को बौद्धिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक रूप से विकसित एवं सशक्त बनाने हेतु कृतसंकल्पित है।
अब हमारे सामने प्रश्न यह है कि, यदि हम एक सशक्त और विकसित राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं तो हम सनातन धर्मियों को अपने सामाजिक और जातिगत मनमुटाव को परे रखना होगा और हाथ से हाथ मिला कर राष्ट्र के निर्माण में तन, मन, धन से जुड़ना होगा।ज्योहीं हम सशक्त रुप से एकजुट होना प्रारम्भ होंगें, हमारी आपसी एकता ही हमारे राष्ट्र के सामने से बहुत से प्रश्नों और संकटों को दूर कर देगी। ज्यों ज्यों हमारा सनातन समाज एकता के सूत्र आबद्ध होता जाएगा अनेकों समस्या एवं संकट स्वतःभस्म हो जाएंगे।
इसलिए वर्तमान समय की आवश्यकता है कि हम अपने सारे मतभेदों को भुलकर राष्ट्र के निर्माण के प्रति संकल्पित हो जाएं,क्योंकि यह मजबूत राष्ट्र भारतवर्ष, सिर्फ भारत के लोगों के लिए ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी एवं समृद्धिशाली सिद्ध होगा। यहां बहुत से लोग यह प्रश्न उठा सकते हैं कि राष्ट्र की उन्नति के लिए क्या राष्ट्र का निर्माण आवश्यक है? तो इसका उत्तर होगा, ‘हाँ’।अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि जिस राष्ट्र के मूल नागरिकों की जैसी इच्छा शक्ति, मनोकामना, स्वभाव और व्यवहार होगा उसी तरह से उस राष्ट्र का निर्माण होगा, जिसका एक बहुत ही अच्छा उदाहरण हमारे सामने जापान, जर्मनी, फ्रांस, इजराइल आदि देशों का है, यदि हम इजराइल का ही उदाहरण लें, तो हम देखते हैं कि अगर इसराइल के लोगों में ही आपसी एकता ना हो, जैसा कि हमारे भारत में है तो इजराइल देश पर उसके दुश्मन देशों का आधिपत्य हो जाएगा,लेकिन इसराइल की जनता के हृदय में राष्ट्रवाद की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है, जिसका परिणाम यह हुआ है कि इजराइल पर कई मुस्लिम देशों ने एक साथ आक्रमण किया, लेकिन इसराइल ने सभी मुस्लिम देशों को एक ही साथ पराजित कर दिया, और आज हम ये देख रहे हैं कि इसराइल आज विश्व की एक बहुत ही बड़ी आर्थिक एवं सैन्य शक्ति के रूप में पूरे विश्व के सामने गर्व के साथ खड़ा है। इसके साथ ही इजराइल पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा स्टार्टअप्स के साथ पूरी दुनिया में अपनी आर्थिक शक्ति का भी लोहा मनवा रहा है।
सिर्फ इन्हीं दो क्षेत्रों में ही नहीं अपितु टेक्नोलॉजी ,कृषि ,अन्वेषण आदि अनेक क्षेत्रों में भी इजराइल का वर्चस्व पूरे विश्व में विद्यमान है। अगर हम भारतीय भी अपने आप को विश्व शक्तियों में विकसित और शक्तिशाली देखना चाहते हैं तो हम सबको अपने जातिगत भेदभाव को भुला कर राष्ट्र निर्माण में तन मन से लगना होगा, और भारत के जो भी हिन्दू शासक हों या भविष्य में बनें उनको पूर्ण समर्थन सेऔर ज्यादा सशक्त करना होगा, ताकि हम एक बेहतर राष्ट्र का निर्माण कर सकें। क्योंकि राष्ट्र का निर्माण राष्ट्र के सच्चे सपूत करते हैं गद्दार और कायर नहीं। अतः ब्रह्मराष्ट्रएकम का विचार भारत जैसे राष्ट्र को अत्यधिक शक्तिशाली और मजबूत बनाने के लिए एक क्रांतिकारी विचार है, जिसमें देश की अखंडता और एकता भविष्य में महान सिद्ध होगी।

भारत में जाति व्यवस्था का संक्षिप्त मूल्यांकन औऱ हिन्दू एकता का पुनर्जागरण :

जाति आधारित सामाजिक संरचना भारतवर्ष का सच है आज के संदर्भ में यह बात कहना उतना ही असत्य है जितना असत्य यह बात है कि सामंतवादी व्यवस्था शोषणकारी थी और आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था जनकल्याणकारी। अगर सामंती व्यवस्था विभेदकारी थी तो आधुनिक लोकतांत्रिक प्रणाली भेदभाव को कम करने में उससे कमतर नहीं है। अब चलते हैं मूल विषय जाति पर क्या कोई बता सकता है कि भारतीय समाज की जो जातिगत व्यवस्था थी इसके मूल में तत्कालीन आर्थिक व्यवस्था थी या जातिगत संरचना के मूल में भेदभाव और शोषण की व्यवस्था थी? तो आज के लोकतांत्रिक व्यवस्था के पैरोंकारों का जवाब होगा कि जातिगत व्यवस्था के मूल में शोषण और कुलीनता की भावना। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं। आधुनिक व्यवस्था में जातिगत संरचना के मूल मंतव्य को गायब कर के जिस तरह से जातिगत संरचना के केवल दोषों को प्रसारित किया जाता है उसके पीछे कि मूल भावना यह है कि सामंती आर्थिक ढांचे को खत्म करके नए आर्थिक ढांचे का विकास किया जाए कारण यह है कि सामंती आर्थिक ढांचा ही जातिगत ढांचा है और इस ढांचे के विनाश के बिना नया आर्थिक ढांचा कभी खड़ा हो नहीं सकता। अगर हम सामंती आर्थिक ढांचे के तदनुरूप विकसित जातिगत समाज का अध्ययन करें और वर्तमान व्यवस्था के आर्थिक, एवं जातिगत ढांचे का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पाएंगे कि जो जाती कल थी वही जाती आज भी जस की तस है फर्क बस इतना है कि जाति का स्वरूप बदल गया है।उदाहरण के लिए क्या लोहार आज नहीं है या नहीं जाति नहीं है यह सभी जातियां अभी भी मौजूद हैं और बदला है तो इनका बस स्वरूप बदला है।

जातियों का यह स्वरूप आने वाले समय में एक नए रूप में हमारे सामने प्रकट होगा जिसमें कहीं ज्यादा आपसी भाईचारा प्रेम और सौहार्द की भावना होगी क्योंकि लोकतंत्र का गुण यह भी है कि वह सबको अपने साथ लेकर चलने का गुण जानता है और यही लोकतंत्र की खासियत है और यही खासियत हिंदू समाज को आने वाले समय में एकजुट और मजबूत बनाएगी क्योंकि लोकतंत्र के नायक और अलग-अलग समाजों के नायक लोकतंत्र में अपनी पहचान बनाने के लिए समाज को एकजुट करने में अपना पूरा दम लगा देंगे और हिंदू समाज की यही शक्तियां हम सब को एक नई दिशा और नए सवेरे की ओर ले जाएंगी ।इन्हीं नई शक्तियों और प्रकाश पुंजों में एक प्रकाश पुंज है वाराणसी की सामाजिक संस्था ब्रह्म राष्ट्र एकम संस्था जो कि एक स्वप्न है युवा समाजसेवक एवं उद्यमी श्री सचिन मिश्रा जी का जो कि हिन्दुत्व के उत्थान के लिए भगीरथ प्रयास में लगे हुए हैं, और हमें बस सचिन मिश्रा जी के साथ देना होगा और हम समस्त हिंदुओं को एकजुट रहना होगा ताकि जब सुबह हो तो सभी हिन्दू एक साथ हों,इसके साथ ही हम सबको इस नई सुबह के होने तक अपना धैर्य बनाए रखना होगा।

इस आयोजन के मूल विचार का सूत्रपात सनातन धर्म के प्रति अपार आस्था रखते हुए कई विद्वानों, धर्मशास्त्रियों एवं कर्मयोगियों से व्यापक विचार विमर्श के उपरांत ब्रह्मराष्ट्र एकम की रचना की गई है। जिसका मूलभूत उद्देश्य है कि पूरे भारतवर्ष में जितने भी सनातन धर्मी हैं पहले उनको एक मंच पर एकत्रित किया जाए उसके पश्चात पूरे विश्व में सनातन धर्म की पुनर्स्थापना एवं सनातन संस्कृति का प्रचार प्रसार किया जाए जिससे कि पूरी दुनिया के लोग सनातन सभ्यता एवं संस्कृति को अनुभव कर सकें तत्पश्चात इसे जुड़कर अपना और अपने समाज को लाभान्वित कर सकें, जैसा कि हमने पिछले कुछ वर्षों में देखा कि जब करोना महामारी से संपूर्ण यूरोप एवं विश्व त्राहिमाम कर रहा था उस समय भारतीयों की बहुत ही अल्प मात्रा में जान गई, जिसका संपूर्ण श्रेय सनातन संस्कृति, संयमित जीवन पद्धति,संयमित रहन सहन एवं खानपान को जाता है।

जिस सनातन संस्कृति एवं सभ्यता एवं संयमित जीवन शैली का पहले लोग उपहास उड़ाते थे, हमारी सनातन सभ्यता के लोगों का कोरोना की इतनी भयावह महामारी के बावजूद बहुत ही कम जन क्षति हुई, और पूरा सनातन समाज एकजुट रहते हुए कॅरोना महामारी का निर्भीकता से सामना किया।

विश्वकल्याण के इस स्वप्न को साकार करने के लिए ही ब्रह्मराष्ट्र एकम की परिकल्पना की गई, ताकि विश्व के सभी सनातन धर्मियों एवं सनातन विचार रखने वालों को एक मंच पर लाया जा सके, विश्व कल्याण के इस भाव को साकार करने हेतु ब्रह्मराष्ट्र एकम अपना प्रथम दो दिवसीय अधिवेशन “अंतरराष्ट्रीय सनातन अधिवेशन एवं विश्व शांति एकता यज्ञ” का संभावित आयोजन 19, 20 दिसंबर 2021 को वाराणसी में आयोजित करने जा रहा है।

भाई “सचिन सनातनी“
राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रह्मराष्ट्र एकम

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संस्थापक

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भाई ``सचिन सनातनी``

राष्ट्रीय अध्यक्ष
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श्री सतीश चंद्र सनातनी

संचालन अध्यक्ष
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श्री रविंद्रनाथ सनातनी

प्रधान अध्यक्ष
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श्री गुरुदेव पंडित दिवाकर सनातनी

संस्कार अध्यक्ष

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यह ऐसा विशाल मंच है जो प्राचीन समय से सृष्टि की रचना के अनुसार जो व्यवस्था बनी है,  उस सनातन व्यवस्था की  संस्कृति, संस्कार एवं सभ्यता को ध्यान में रखते हुए  सनातन धर्म के प्रमुख संतो, धर्म प्रचारकों एवं धार्मिक वक्ताओं को मंच प्रदान कर समाज को जागरूक करते हुए सनातन मूल्यों,परंपराओं एवं आदर्शों की स्थापना करेंगें।

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